Love Poetry (page 204)
दूर हो दर्द-ए-दिल ये और दर्द-ए-जिगर किसी तरह
बहराम जी
दुनिया में इबादत को तिरी आए हुए हैं
बहराम जी
बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की
बहराम जी
तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा
ज़फ़र
न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनर
ज़फ़र
मेरे सुर्ख़ लहू से चमकी कितने हाथों में मेहंदी
ज़फ़र
मर्ग ही सेहत है उस की मर्ग ही उस का इलाज
ज़फ़र
मैं सिसकता रह गया और मर गए फ़रहाद ओ क़ैस
ज़फ़र
लोगों का एहसान है मुझ पर और तिरा मैं शुक्र-गुज़ार
ज़फ़र
क्या ताब क्या मजाल हमारी कि बोसा लें
ज़फ़र
ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का
ज़फ़र
हम अपना इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ
ज़फ़र
फ़रहाद ओ क़ैस ओ वामिक़ ओ अज़रा थे चार दोस्त
ज़फ़र
बे-ख़ुदी में ले लिया बोसा ख़ता कीजे मुआफ़
ज़फ़र
ज़ुल्फ़ जो रुख़ पर तिरे ऐ मेहर-ए-तलअत खुल गई
ज़फ़र
ये क़िस्सा वो नहीं तुम जिस को क़िस्सा-ख़्वाँ से सुनो
ज़फ़र
याँ ख़ाक का बिस्तर है गले में कफ़नी है
ज़फ़र
या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता
ज़फ़र
वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले
ज़फ़र
वाँ इरादा आज उस क़ातिल के दिल में और है
ज़फ़र
टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच
ज़फ़र
तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है
ज़फ़र
शाने की हर ज़बाँ से सुने कोई लाफ़-ए-ज़ुल्फ़
ज़फ़र
शमशीर-ए-बरहना माँग ग़ज़ब बालों की महक फिर वैसी ही
ज़फ़र
सब रंग में उस गुल की मिरे शान है मौजूद
ज़फ़र
पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के
ज़फ़र
पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या
ज़फ़र
निबाह बात का उस हीला-गर से कुछ न हुआ
ज़फ़र
नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा
ज़फ़र
न उस का भेद यारी से न अय्यारी से हाथ आया
ज़फ़र