Love Poetry (page 203)
जान ले ले न ज़ब्त-ए-आह कहीं
बकुल देव
हुए हम बे-सर-ओ-सामान लेकिन
बकुल देव
हमें रास आनी है राहों की गठरी
बकुल देव
हमें देखा न कर उड़ती नज़र से
बकुल देव
हादसात अब के सफ़र में नए ढब से आए
बकुल देव
गो ज़रा तेज़ शुआएँ थीं ज़रा मंद थे हम
बकुल देव
दिल से बे-सूद और जाँ से ख़राब
बकुल देव
चाल अपनी अदा से चलते हैं
बकुल देव
बारिशों में अब के याद आए बहुत
बकुल देव
बात बिगड़ी हुई बनी सी रही
बकुल देव
अब उजड़ने के हम न बसने के
बकुल देव
कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना
बख़्श लाइलपूरी
हुसूल-ए-मंज़िल-ए-जाँ का हुनर नहीं आया
बख़्श लाइलपूरी
घर भी वीराना लगे ताज़ा हवाओं के बग़ैर
बख़्श लाइलपूरी
दर्द-ए-हिजरत के सताए हुए लोगों को कहीं
बख़्श लाइलपूरी
उसी के ज़ुल्म से मैं हालत-ए-पनाह में था
बख़्श लाइलपूरी
तिश्नगी-ए-लब पे हम अक्स-ए-आब लिक्खेंगे
बख़्श लाइलपूरी
रुत न बदले तो भी अफ़्सुर्दा शजर लगता है
बख़्श लाइलपूरी
रुख़-ए-हयात है शर्मिंदा-ए-जमाल बहुत
बख़्श लाइलपूरी
कोई शय दिल को बहलाती नहीं है
बख़्श लाइलपूरी
कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना
बख़्श लाइलपूरी
हुसूल-ए-मंज़िल-ए-जाँ का हुनर नहीं आया
बख़्श लाइलपूरी
रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-जाँ में बुतों का पड़ गया
बहराम जी
इश्क़ में दिल से हम हुए महव तुम्हारे ऐ बुतो
बहराम जी
यार को हम ने बरमला देखा
बहराम जी
कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है
बहराम जी
कब तसव्वुर यार-ए-गुल-रुख़्सार का फ़े'अल-ए-अबस
बहराम जी
जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है
बहराम जी
हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे
बहराम जी
ग़मगीं नहीं हूँ दहर में तो शाद भी नहीं
बहराम जी