Love Poetry (page 201)
रहता है ज़ुल्फ़-ए-यार मिरे मन से मन लगा
बाक़र आगाह वेलोरी
नहीं है अश्क से ये ख़ून-ए-नाब आँखों में
बाक़र आगाह वेलोरी
महव-ए-फ़रियाद हो गया है दिल
बाक़र आगाह वेलोरी
लब-ए-जाँ-बख़्श के मीठे का तेरे जो मज़ा पाया
बाक़र आगाह वेलोरी
क्यूँ कर न ऐसे जीने से या रब मलूल हूँ
बाक़र आगाह वेलोरी
दिल में दिलदार निहाँ था मुझे मा'लूम न था
बाक़र आगाह वेलोरी
दिल को ले जी को अब लुभाते हो
बाक़र आगाह वेलोरी
अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा
बाक़र आगाह वेलोरी
ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही
बक़ा बलूच
तू ख़ुश है अपनी दुनिया में
बक़ा बलूच
सिर्फ़ मौसम के बदलने ही पे मौक़ूफ़ नहीं
बक़ा बलूच
नए समय की कोयल
बक़ा बलूच
माँ
बक़ा बलूच
वा'दे झूटे क़स्में झूटी
बक़ा बलूच
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे
बक़ा बलूच
सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो
बक़ा बलूच
क्या पूछते हो मैं कैसा हूँ
बक़ा बलूच
क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा
बक़ा बलूच
कम कम रहना ग़म के सुर्ख़ जज़ीरों में
बक़ा बलूच
जाने क्या सोच के घर तक पहुँचा
बक़ा बलूच
अब नहीं दर्द छुपाने का क़रीना मुझ में
बक़ा बलूच
कितना भी मुस्कुराइए दिल है मगर बुझा बुझा
बनो ताहिरा सईद
किरदार ही से ज़ीनत-ए-अफ़्लाक हो गए
बनो ताहिरा सईद
तू भले मेरा ए'तिबार न कर
बलवान सिंह आज़र
पूछना चाँद का पता 'आज़र'
बलवान सिंह आज़र
मार देती है ज़िंदगी ठोकर
बलवान सिंह आज़र
खुला मकान है हर एक ज़िंदगी 'आज़र'
बलवान सिंह आज़र
साक़ी खुलता है पैमाना खुलता है
बलवान सिंह आज़र
मिरे सफ़र में ही क्यूँ ये अज़ाब आते हैं
बलवान सिंह आज़र
लोग भूके हैं बहुत और निवाले कम हैं
बलवान सिंह आज़र