Sharab Poetry (page 3)
रहती है सब के पास तन्हाई
इंद्र सराज़ी
कोई बाग़ सा सजा हुआ मिरे सामने
इनाम नदीम
फिर आस-पास से दिल हो चला है मेरा उदास
इम्तियाज़ अली अर्शी
हम न दुनिया के हैं न दीं के हैं
इमरान-उल-हक़ चौहान
अपने लहू में ज़हर भी ख़ुद घोलता हूँ मैं
इमरान-उल-हक़ चौहान
हमारी मोहब्बत नुमू से निकल कर कली बन गई थी मगर थी नुमू में
इमरान शमशाद
रात चराग़ की महफ़िल में शामिल एक ज़माना था
इमदाद निज़ामी
लोग जब तेरा नाम लेते हैं
इम्दाद इमाम असर
कब ग़ैर हुआ महव तिरी जल्वागरी का
इम्दाद इमाम असर
हुस्न की जिंस ख़रीदार लिए फिरती है
इम्दाद इमाम असर
ये दिल है तो आफ़त में पड़ते रहेंगे
इमदाद अली बहर
साक़ी तिरे बग़ैर है महफ़िल से दिल उचाट
इमदाद अली बहर
क़द्र-दाँ कोई न असफ़ल है न आ'ला अपना
इमदाद अली बहर
मैं सियह-रू अपने ख़ालिक़ से जो ने'मत माँगता
इमदाद अली बहर
मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का
इमदाद अली बहर
महरम के सितारे टूटते हैं
इमदाद अली बहर
महबूब-ए-ख़ुदा ने तुझे नायाब बनाया
इमदाद अली बहर
किया सलाम जो साक़ी से हम ने जाम लिया
इमदाद अली बहर
ख़ुदा-परस्त हुए न हम बुत-परस्त हुए
इमदाद अली बहर
ख़ुदा-परस्त हुए हम न बुत-परस्त हुए
इमदाद अली बहर
जज़्ब-ए-उल्फ़त ने दिखाया असर अपना उल्टा
इमदाद अली बहर
जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है
इमदाद अली बहर
जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए
इमदाद अली बहर
जब दस्त-बस्ता की नहीं उक़्दा-कुशा नमाज़
इमदाद अली बहर
हम आज-कल हैं नामा-नवीसी की ताव पर
इमदाद अली बहर
हर तरफ़ मज्मा-ए-आशिक़ाँ है
इमदाद अली बहर
गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया
इमदाद अली बहर
गर्दिश-ए-चर्ख़ से क़याम नहीं
इमदाद अली बहर
चूर सदमों से हो बईद नहीं
इमदाद अली बहर
चार दिन है ये जवानी न बहुत जोश में आ
इमदाद अली बहर