Sharab Poetry (page 5)
दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ
इदरीस बाबर
उन्स तो होता है दीवाने से दीवाने को
इबरत बहराईची
उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो
इब्राहीम अश्क
करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे
इब्राहीम अश्क
ज़ेहन से दिल का बार उतरा है
इब्न-ए-सफ़ी
छलकती आए कि अपनी तलब से भी कम आए
इब्न-ए-सफ़ी
आज की रात कटेगी क्यूँ कर साज़ न जाम न तो मेहमान
इब्न-ए-सफ़ी
शौक़ जब भी बंदगी का रहनुमा होता नहीं
इब्न-ए-मुफ़्ती
कर बुरा तो भला नहीं होता
इब्न-ए-मुफ़्ती
फ़र्ज़ करो
इब्न-ए-इंशा
जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है
इब्न-ए-इंशा
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
इब्न-ए-इंशा
रहेगा अक़्ल के सीने पे ता-अबद ये दाग़
हुरमतुल इकराम
जैसे जैसे दर्द का पिंदार बढ़ता जाए है
हुरमतुल इकराम
फ़रोग़-ए-दीदा-वरी का ज़माना आया है
हुरमतुल इकराम
तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो
होश तिर्मिज़ी
तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो
होश तिर्मिज़ी
तज़ाद
हिमायत अली शाएर
मुद्दत के बाद
हिमायत अली शाएर
बगूला
हिमायत अली शाएर
चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब
हिमायत अली शाएर
जाम-ए-इश्क़ पी चुके ज़िंदगी भी जी चुके
हिलाल फ़रीद
थी अजब ही दास्ताँ जब तमाम हो गई
हिलाल फ़रीद
वो शोख़ बाम पे जब बे-नक़ाब आएगा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
दिल फ़ुर्क़त-ए-हबीब में दीवाना हो गया
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
मैं अक्सर सोचती हूँ ज़िंदगी को कौन लिक्खेगा
हिजाब अब्बासी
तारों से माहताब से और कहकशाँ से क्या
हीरा लाल फ़लक देहलवी
सुकून-ए-दिल के लिए और क़रार-ए-जाँ के लिए
हीरा लाल फ़लक देहलवी
मेरी हस्ती में मिरी ज़ीस्त में शामिल होना
हीरा लाल फ़लक देहलवी