Sharab Poetry (page 60)
ख़मोश बैठे हो क्यूँ साज़-ए-बे-सदा की तरह
अातिश बहावलपुरी
इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी
अातिश बहावलपुरी
आँखों को नक़्श-ए-पा तिरा दिल को ग़ुबार कर दिया
आतिफ़ वहीद 'यासिर'
क़ैद से पहले भी आज़ादी मिरी ख़तरे में थी
आसी उल्दनी
क़ैद से पहले भी आज़ादी मिरी ख़तरे में थी
आसी उल्दनी
सरशार हूँ साक़ी की आँखों के तसव्वुर से
आसी रामनगरी
सर झुकाए सर-ए-महशर जो गुनहगार आए
आसी रामनगरी
मानूस हो गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम
आसी रामनगरी
लाला-ओ-गुल पे ख़िज़ाँ आज भी जब छाई है
आसी रामनगरी
हैं अहल-ए-चमन हैराँ ये कैसी बहार आई
आसी रामनगरी
वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद
आसी ग़ाज़ीपुरी
उसी के जल्वे थे लेकिन विसाल-ए-यार न था
आसी ग़ाज़ीपुरी
न मेरे दिल न जिगर पर न दीदा-ए-तर पर
आसी ग़ाज़ीपुरी
एक जल्वे की हवस वो दम-ए-रेहलत भी नहीं
आसी ग़ाज़ीपुरी
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
आसी ग़ाज़ीपुरी
उस पे क्या गुज़रेगी वक़्त मर्ग अंदाज़ा लगा
आसी फ़ाईकी
शनासा आहटें
आशुफ़्ता चंगेज़ी
दयार-ए-ख़्वाब
आशुफ़्ता चंगेज़ी
इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें
आनिस मुईन
सलोनी सर्दियों की नज़्म
आमिर सुहैल
मय-कशी के भी कुछ आदाब बरतना सीखो
आल-ए-अहमद सूरूर
अभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
आल-ए-अहमद सूरूर
आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
आल-ए-अहमद सूरूर
आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
आल-ए-अहमद सूरूर
ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी
आल-ए-अहमद सूरूर
सियाह रात की सब आज़माइशें मंज़ूर
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़्वाबों से यूँ तो रोज़ बहलते रहे हैं हम
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है
आल-ए-अहमद सूरूर
जब्र-ए-हालात का तो नाम लिया है तुम ने
आल-ए-अहमद सूरूर
हम बर्क़-ओ-शरर को कभी ख़ातिर में न लाए
आल-ए-अहमद सूरूर