Sufi Poetry (page 12)
ये धूप छाँव के असरार क्या बताते हैं
असअ'द बदायुनी
उस अब्र से भी क़बाहत ज़ियादा होती है
असअ'द बदायुनी
अभी ज़मीन को सौदा बहुत सरों का है
असअ'द बदायुनी
ख़ुदी की फ़ितरत-ए-ज़र्रीं के राज़-हा-ए-दरूँ
आरज़ू सहारनपुरी
मोहब्बत नेक-ओ-बद को सोचने दे ग़ैर-मुमकिन है
आरज़ू लखनवी
तुम्हें क्या काम नालों से तुम्हें क्या काम आहों से
आरज़ू लखनवी
क़ुर्बत बढ़ा बढ़ा कर बे-ख़ुद बना रहे हैं
आरज़ू लखनवी
ख़ुदी के ज़ो'म में ऐसा वो मुब्तला हुआ है
अरशद महमूद अरशद
ऐ बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहीं
अरशद अली ख़ान क़लक़
साफ़ बातों से हो गया मा'लूम
अरशद अली ख़ान क़लक़
लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में
अरशद अली ख़ान क़लक़
आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब
अरशद अली ख़ान क़लक़
आएँगे वो तो आप में हरगिज़ न आएँगे
अरशद अली ख़ान क़लक़
एहसास-ए-हुस्न बन के नज़र में समा गए
अर्श मलसियानी
ज़हराब-ए-तिश्नगी का मज़ा हम से पूछिए
आरिफ़ अंसारी
दास्ताँ भी मुख़्तलिफ़ लहजा भी यारों से जुदा
आरिफ़ अंसारी
वो कारवान-ए-बहाराँ कि बे-दरा होगा
आरिफ़ अब्दुल मतीन
कितने सवाल सब की निगाहों में रख दिए
अक़ील दानिश
मज़ा देता है याद आ कर तिरा बिस्मिल बना देना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
क्या शहर में है गर्मी-ए-बाज़ार के सिवा
अनवर सिद्दीक़ी
नहीं मिलते 'शुऊर' आँसू बहाते
अनवर शऊर
जल्वे दिखाए यार ने अपनी हरीम-ए-नाज़ में
अनवर सहारनपुरी
ज़ुल्मतों में रौशनी की जुस्तुजू करते रहो
अनवर साबरी
कैसी कैसी आयतें मस्तूर हैं नुक़्ते के बीच
अनवर मसूद
बस यूँही इक वहम सा है वाक़िआ ऐसा नहीं
अनवर मसूद
यूसुफ़-ए-हुस्न का हुस्न आप ख़रीदार रहा
अनवर देहलवी
हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का
अनवर देहलवी
देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था
अनवर देहलवी
आज़ार मिरे दिल का दिल-आज़ार न हो जाए
अंजुम ख़याली
ख़ाक का रिज़्क़ यहाँ हर कस-ओ-ना-कस निकला
अंजुम ख़लीक़