ऐ बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहीं
किस दिन बहार आई मैं दीवाना कब हुआ
Wasi Shah
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Habib Jalib
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Jaun Eliya
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Allama Iqbal
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ख़फ़ा हो गालियाँ दो चाहे आने दो न आने दो
लुट रही है दौलत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में
न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में
लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
लूटे मज़े जो हम ने तुम्हारे उगाल के
लुत्फ़-ए-बहार मुश्फ़िक़-ए-मन देखते चलो
बोलेगा कौन आशिक़-ए-नादार की तरफ़
यार की फ़र्त-ए-नज़ाकत का हूँ मैं शुक्र-गुज़ार
गुल-गूँ तिरी गली रहे आशिक़ के ख़ून से
दिल में आते ही ख़ुशी साथ ही इक ग़म आया
रस्ते में उन को छेड़ के खाते हैं गालियाँ
आरिज़ में तुम्हारे क्या सफ़ा है