सहरा में भटकता हुआ इक दरिया हूँ
आया न तड़पना जिसे वो पारा हूँ
ये क्या है ये अंदाज़-ए-रिफ़ाक़त क्या है
है एक जहाँ साथ मगर तन्हा हूँ
Rahat Indori
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(768) Peoples Rate This
वो आलम है कि हर मौज-ए-नफ़स है रूह पर भारी
रहेगा अक़्ल के सीने पे ता-अबद ये दाग़
फ़रोग़-ए-दीदा-वरी का ज़माना आया है
ख़्वाबों के साथ ज़ेहन की अंगड़ाइयाँ भी हैं
दिल-ए-आज़ुर्दा को बहलाए हुए हैं हम लोग
रह-ए-तलब में बड़ी तुर्फ़गी के साथ चले
उस के सिवा क्या अपनी दौलत
नादीदा ख़लाओं से गुज़र आई है
अपने चमन पे अब्र ये कैसा बरस गया
ठहरेगा वही रन में जो हिम्मत का धनी है
वक़्त गर्दिश में ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि जो था
ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है