फिर उस के ब'अद तअल्लुक़ में फ़ासले होंगे
मुझे सँभाल के रखना बिछड़ न जाऊँ मैं
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बिखर ही जाऊँगा मैं भी हवा उदासी है
तू नहीं तो ज़िंदगी में और क्या रह जाएगा
वो नहीं मिलता मुझे इस का गिला अपनी जगह
जो चुप रहा तो वो समझेगा बद-गुमान मुझे
तिरे क़रीब रहूँ या कि दूर जाऊँ मैं
दर्द की सारी तहें और सारे गुज़रे हादसे
वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं
इक मुसलसल दौड़ में हैं मंज़िलें और फ़ासले