अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है
कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के
ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया
एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं
इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा
चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर-ए-अजल पड़ता है
अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया
हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
एक दुनिया की कशिश है जो इधर खींचती है
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी