जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है
सुनते हैं जो बहिश्त की तारीफ़ सब दुरुस्त
अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे
मय वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में या रब
जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बे-ख़बर सोता
दोनों जहाँ दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं
नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का