वो चाहते हैं कि हर बात मान ली जाए
और एक मैं हूँ कि हर बात काट देता हूँ
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दरून-ए-ज़ात हुजूम-ए-अज़ाब ठहरा है
आँखों में शब उतर गई ख़्वाबों का सिलसिला रहा
सुलगती धूप में जल कर फ़क़ीर-ए-शब तिरी ख़ाक
कोई आता है या नहीं आता
उस बार उजालों ने मुझे घेर लिया था
आज कुछ सूरत-ए-अफ़्लाक जुदा लगती है
अपने अंदर के अंधेरे को जलाया मैं ने
ऐ अक़्ल नहीं आएँगे बातों में तिरी हम
दिल ये कहता है हार कर देखें
इसी जवाब के रस्ते सवाल आते हैं
एक हंगामा शब-ओ-रोज़ बपा रहता है