मरने की दुआएँ क्यूँ माँगूँ जीने की तमन्ना कौन करे
ये दुनिया हो या वो दुनिया अब ख़्वाहिश-ए-दुनिया कौन करे
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
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Gulzar
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शरीक-ए-महफ़िल-ए-दार-ओ-रसन कुछ और भी हैं
ज़ब्त-ए-ग़म बे-सबब नहीं 'जज़्बी'
ऐ ग़ैरत-ए-ग़म आँख मिरी नम तो नहीं है
यही ज़िंदगी मुसीबत यही ज़िंदगी मसर्रत
न आए मौत ख़ुदाया तबाह-हाली में
मुतरबा
बीते हुए दिनों की हलावत कहाँ से लाएँ
रिसते हुए ज़ख़्मों का हो कुछ और मुदावा
कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मुदावा
मेरी ही नज़र की मस्ती से सब शीशा-ओ-साग़र रक़्साँ थे
हम दहर के इस वीराने में जो कुछ भी नज़ारा करते हैं
तवाइफ़