हाल दिल यार को लिक्खूँ क्यूँकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता
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वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वादा-ए-वस्लत से दिल हो शाद क्या
उल्टे वो शिकवे करते हैं और किस अदा के साथ
सौदा था बला-ए-जोश पर रात
वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब
हम समझते हैं आज़माने को
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
इस वुसअत-ए-कलाम से जी तंग आ गया
हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
करता है क़त्ल-ए-आम वो अग़्यार के लिए
चल दिए सू-ए-हरम कू-ए-बुताँ से 'मोमिन'