तिरी अदा की क़सम है तिरी अदा के सिवा
पसंद और किसी की हमें अदा न हुई
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कली रह गई ना-शगुफ़्ता हमारी
मिलो मिलो न मिलो इख़्तियार है तुम को
अब कौन बात रह गई ये बात भी गई
मिरी ख़ाक भी उड़ेगी बा-अदब तिरी गली में
मेरे सर से क्या ग़रज़ सरकार को
मेहराब-ब-इबादत ख़म-ए-अबरू है बुतों का
फिर न दरमाँ का कभी नाम 'मुबारक' लेना
बेवफ़ा उम्र दग़ाबाज़ जवानी निकली
जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
कहते हैं कि दे मेरी बला दाद किसी की
मेहरबानी चारासाज़ों की बढ़ी
दिल लगाते ही तो कह देती हैं आँखें सब कुछ