मेहरबानी चारासाज़ों की बढ़ी
जब बढ़ा दरमाँ तो बीमारी बढ़ी
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उधर चुटकी वो दिल में ले रहे हैं
समझाएँ किस तरह दिल-ए-ना-कर्दा-कार को
अपनी सी करो तुम भी अपनी सी करें हम भी
तुम वक़्त पे कर जाते हो पैमान फ़रामोश
तुम भूल गए मुझ को यूँ याद दिलाता हूँ
हम भी दीवाने हैं वहशत में निकल जाएँगे
ये घटा ऐसी घटा इतनी घटा
मिरी ख़ाक भी उड़ेगी बा-अदब तिरी गली में
क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
दर्द-ए-दिल यार रहा दर्द से यारी न गई
अब वही सैद है जो था सय्याद
रहने दे अपनी बंदगी ज़ाहिद