उधर चुटकी वो दिल में ले रहे हैं
इधर इक गुदगुदी सी हो रही है
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मेहराब-ब-इबादत ख़म-ए-अबरू है बुतों का
रहने दे अपनी बंदगी ज़ाहिद
चितवन जो क़हर की है तो तेवर जलाल के
किसी ने बर्छियाँ मारीं किसी ने तीर मारे हैं
नावक कहें सिनाँ कहें तलवार क्या कहें
फिर न दरमाँ का कभी नाम 'मुबारक' लेना
ये घटा ऐसी घटा इतनी घटा
अब कौन बात रह गई ये बात भी गई
क्यूँ किया करते हैं आहें कोई हम से पूछे
हम भी दीवाने हैं वहशत में निकल जाएँगे
दिल में आने के 'मुबारक' हैं हज़ारों रस्ते
मैं तो हर हर ख़म-ए-गेसू की तलाशी लूँगा