ये घटा ऐसी घटा इतनी घटा
मय हलाल ऐसे में है मय-ख़्वार को
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जिनाँ की कहते हैं यूँ मुझ से हज़रत-ए-वाइज़
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं
मस्जिद की सर-ए-राह बिना डाल न ज़ाहिद
अपनी सी करो तुम भी अपनी सी करें हम भी
जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
बद-ज़न हैं अहल-ए-काबा मुझ दैर-आश्ना से
इश्क़ की चौसर किस ने खेली ये तो खेल हमारे हैं
चितवन जो क़हर की है तो तेवर जलाल के
पर्दे पर्दे में बहुत मुझ पे तिरे वार चले
किसी ने बर्छियाँ मारीं किसी ने तीर मारे हैं
क्यूँ किया करते हैं आहें कोई हम से पूछे
निकलना आरज़ू का दिल से मालूम