ये ग़म-कदा है इस में 'मुबारक' ख़ुशी कहाँ
ग़म को ख़ुशी बना कोई पहलू निकाल के
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जाँ-निसारान-ए-मोहब्बत में न हो अपना शुमार
जो उन को चाहिए वो किए जा रहे हैं वो
तुम्हारी शर्त-ए-मोहब्बत कभी वफ़ा न हुई
जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
तौबा की रिंदों में गुंजाइश कहाँ
मिरी ख़ाक भी उड़ेगी बा-अदब तिरी गली में
मोहब्बत में वफ़ा की हद जफ़ा की इंतिहा कैसी
दिन भी है रात भी है सुब्ह भी है शाम भी है
खटक रही है कोई शय निकाल दे कोई
मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है
क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
मेहरबानी चारासाज़ों की बढ़ी