जो उन को चाहिए वो किए जा रहे हैं वो
जो मुझ को चाहिए वो किए जा रहा हूँ मैं
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चितवन जो क़हर की है तो तेवर जलाल के
मेहराब-ब-इबादत ख़म-ए-अबरू है बुतों का
कल तो देखा था 'मुबारक' बुत-कदे में आप को
आप का इख़्तियार है सब पर
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं
उधर चुटकी वो दिल में ले रहे हैं
बेगाना-ए-वफ़ा तिरा शेवा ही और है
किसी ने बर्छियाँ मारीं किसी ने तीर मारे हैं
तुम भूल गए मुझ को यूँ याद दिलाता हूँ
जो पाँच वक़्त मुसल्ले पे क़िबला-रू निकले
इस भरी महफ़िल में हम से दावर-ए-महशर न पूछ
नावक कहें सिनाँ कहें तलवार क्या कहें