जो क़यामत का नहीं दिन वो मिरा दिन कैसा
जो तड़प कर न कटी हो वो मिरी रात नहीं
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Gulzar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(519) Peoples Rate This
मेरे सर से क्या ग़रज़ सरकार को
पर्दे पर्दे में बहुत मुझ पे तिरे वार चले
जिनाँ की कहते हैं यूँ मुझ से हज़रत-ए-वाइज़
तुम वक़्त पे कर जाते हो पैमान फ़रामोश
आब-ओ-दाना तिरा ऐ बुलबुल-ए-ज़ार उठता है
ख़बर इतनी तो है झोंके तिरे बाद-ए-ख़िज़ाँ पहुँचे
मेहराब-ब-इबादत ख़म-ए-अबरू है बुतों का
इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
क़ुबूल हो कि न सज्दा ओ सलाम अपना
जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
क्यूँ किया करते हैं आहें कोई हम से पूछे
असर हो या न हो वाइज़ बयाँ में