क़ुबूल हो कि न हो सज्दा ओ सलाम अपना
तुम्हारे बंदे हैं हम बंदगी है काम अपना
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कली रह गई ना-शगुफ़्ता हमारी
क़ुबूल हो कि न सज्दा ओ सलाम अपना
देखे उसे हर आँख का ये काम नहीं है
उधर चुटकी वो दिल में ले रहे हैं
फिर मिले हम उन से फिर यारी बढ़ी
बेश ओ कम का शिकवा साक़ी से 'मुबारक' कुफ़्र था
जाँ-निसारान-ए-मोहब्बत में न हो अपना शुमार
इसे सौदा उसे सौदा ये दीवाना वो दीवाना
बद-ज़न हैं अहल-ए-काबा मुझ दैर-आश्ना से
मेहरबानी चारासाज़ों की बढ़ी
समझाएँ किस तरह दिल-ए-ना-कर्दा-कार को
मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है