समझाएँ किस तरह दिल-ए-ना-कर्दा-कार को
ये दोस्ती समझता है दुश्मन के प्यार को
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तुम्हारी शर्त-ए-मोहब्बत कभी वफ़ा न हुई
दामन अश्कों से तर करें क्यूँ-कर
क़ुबूल हो कि न सज्दा ओ सलाम अपना
हवा बाँधते हैं जो हज़रत जिनाँ की
बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
कल तो देखा था 'मुबारक' बुत-कदे में आप को
इसे सौदा उसे सौदा ये दीवाना वो दीवाना
तुम वक़्त पे कर जाते हो पैमान फ़रामोश
मोहब्बत में वफ़ा की हद जफ़ा की इंतिहा कैसी
रहने दे अपनी बंदगी ज़ाहिद
आइना सामने अब आठ पहर रहता है
बग़ल में हम ने रात इक ग़ैरत-ए-महताब देखा है