मोहब्बत में वफ़ा की हद जफ़ा की इंतिहा कैसी
'मुबारक' फिर न कहना ये सितम कोई सहे कब तक
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क़दम क़दम पे ये कहती हुई बहार आई
बेगाना-ए-वफ़ा तिरा शेवा ही और है
हम भी दीवाने हैं वहशत में निकल जाएँगे
यूँ ये बदली काली काली जाएगी
जो पाँच वक़्त मुसल्ले पे क़िबला-रू निकले
आइना सामने अब आठ पहर रहता है
चितवन जो क़हर की है तो तेवर जलाल के
यहाँ क्या है वहाँ क्या है इधर क्या है उधर क्या है
ख़बर इतनी तो है झोंके तिरे बाद-ए-ख़िज़ाँ पहुँचे
क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
या दूर मिरा हिजाब कर दे
मेरे सर से क्या ग़रज़ सरकार को