क़दम क़दम पे ये कहती हुई बहार आई
कि राह बंद थी जंगल की खोल दी मैं ने
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क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
फिर मिले हम उन से फिर यारी बढ़ी
कल तो देखा था 'मुबारक' बुत-कदे में आप को
क़िबला-ओ-काबा ये तो पीने पिलाने के हैं दिन
क़ुबूल हो कि न सज्दा ओ सलाम अपना
आने में कभी आप से जल्दी नहीं होती
किस पे दिल आया कहाँ आया बता ऐ नासेह
बेवफ़ा उम्र दग़ाबाज़ जवानी निकली
जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
इक तिरी बात कि जिस बात की तरदीद मुहाल
न मानोगे न मानोगे हमारी