फूल क्या डालोगे तुर्बत पर मिरी
ख़ाक भी तुम से न डाली जाएगी
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अब कौन बात रह गई ये बात भी गई
सितम करो न करो इख़्तियार बाक़ी है
नावक कहें सिनाँ कहें तलवार क्या कहें
जो क़यामत का नहीं दिन वो मिरा दिन कैसा
मोहब्बत में वफ़ा की हद जफ़ा की इंतिहा कैसी
न लाए ताब-ए-दीद औसान वाले
क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
मेहरबानी चारासाज़ों की बढ़ी
क़िबला-ओ-काबा ये तो पीने पिलाने के हैं दिन
जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
कब उन आँखों का सामना न हुआ
क़दम क़दम पे ये कहती हुई बहार आई