कब उन आँखों का सामना न हुआ
तीर जिन का कभी ख़ता न हुआ
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बेश ओ कम का शिकवा साक़ी से 'मुबारक' कुफ़्र था
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं
क़यामत की हक़ीक़त जानता हूँ
पूछी तक़्सीर तो बोले कोई तक़्सीर नहीं
दर्द-ए-दिल यार रहा दर्द से यारी न गई
यहाँ क्या है वहाँ क्या है इधर क्या है उधर क्या है
जो पाँच वक़्त मुसल्ले पे क़िबला-रू निकले
तौबा की रिंदों में गुंजाइश कहाँ
असर हो या न हो वाइज़ बयाँ में
हँसी है दिल-लगी है क़हक़हे हैं
जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
मेरे सर से क्या ग़रज़ सरकार को