क़िबला-ओ-काबा ये तो पीने पिलाने के हैं दिन
आप क्या हल्क़ के दरबान बने बैठे हैं
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लगा दे सोज़-ए-मोहब्बत फिर आग सीने में
न लाए ताब-ए-दीद औसान वाले
कली रह गई ना-शगुफ़्ता हमारी
दिल में आने के 'मुबारक' हैं हज़ारों रस्ते
मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है
हँसी है दिल-लगी है क़हक़हे हैं
तुम वक़्त पे कर जाते हो पैमान फ़रामोश
फिर न दरमाँ का कभी नाम 'मुबारक' लेना
आइना सामने अब आठ पहर रहता है
मेरे सर से क्या ग़रज़ सरकार को
ले चला फिर मुझे दिल यार-ए-दिल-आज़ार के पास
जो क़यामत का नहीं दिन वो मिरा दिन कैसा