ले चला फिर मुझे दिल यार-ए-दिल-आज़ार के पास
अब के छोड़ आऊँगा ज़ालिम को सितमगार के पास
मैं तो हर हर ख़म-ए-गेसू की तलाशी लूँगा
कि मिरा दिल है तिरे गेसू-ए-ख़मदार के पास
तू तो एहसान जताती हुई आती है सबा
यूँ भी आता है कोई मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(568) Peoples Rate This
गई बहार मगर अपनी बे-ख़ुदी है वही
पर्दे पर्दे में बहुत मुझ पे तिरे वार चले
कब वो आएँगे इलाही मिरे मेहमाँ हो कर
अजब रंग की मय-परस्ती रही
जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
खटक रही है कोई शय निकाल दे कोई
कली रह गई ना-शगुफ़्ता हमारी
ताज़ा आज़ार का अरमान कहाँ जाता है
ईमान की तो ये है कि ईमान अब कहाँ
क़ुबूल हो कि न सज्दा ओ सलाम अपना
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं
जो उन को चाहिए वो किए जा रहे हैं वो