खटक रही है कोई शय निकाल दे कोई
तड़प रहा है दिल-ए-बे-क़रार सीने में
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आने में कभी आप से जल्दी नहीं होती
बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
क़ुबूल हो कि न सज्दा ओ सलाम अपना
कब वो आएँगे इलाही मिरे मेहमाँ हो कर
कहते हैं कि दे मेरी बला दाद किसी की
यूँ ये बदली काली काली जाएगी
हवा बाँधते हैं जो हज़रत जिनाँ की
इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
दामन अश्कों से तर करें क्यूँ-कर
चितवन जो क़हर की है तो तेवर जलाल के
ये ग़म-कदा है इस में 'मुबारक' ख़ुशी कहाँ
पर्दे पर्दे में बहुत मुझ पे तिरे वार चले