बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
दामन किधर किधर है गिरेबाँ कहाँ कहाँ
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Anwar Masood
Allama Iqbal
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(488) Peoples Rate This
अजब रंग की मय-परस्ती रही
दामन अश्कों से तर करें क्यूँ-कर
तुम्हारी शर्त-ए-मोहब्बत कभी वफ़ा न हुई
क़यामत की हक़ीक़त जानता हूँ
दिल लगाते ही तो कह देती हैं आँखें सब कुछ
हवा बाँधते हैं जो हज़रत जिनाँ की
तौबा की रिंदों में गुंजाइश कहाँ
किसी की तमन्ना निकलती रही
मिलो मिलो न मिलो इख़्तियार है तुम को
नावक कहें सिनाँ कहें तलवार क्या कहें
आइना सामने अब आठ पहर रहता है
क़ुबूल हो कि न सज्दा ओ सलाम अपना