किसी की तमन्ना निकलती रही
मिरी आरज़ू हाथ मलती रही
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दिल लगाते ही तो कह देती हैं आँखें सब कुछ
इक तिरी बात कि जिस बात की तरदीद मुहाल
उस गली में हज़ार ग़म टूटा
क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
घटा उट्ठी है काली और काली होती जाती है
हँसी है दिल-लगी है क़हक़हे हैं
आब-ओ-दाना तिरा ऐ बुलबुल-ए-ज़ार उठता है
लगा दे सोज़-ए-मोहब्बत फिर आग सीने में
आप का इख़्तियार है सब पर
दिल में आने के 'मुबारक' हैं हज़ारों रस्ते
तुम को समझाए मुबर्रक कोई क्यूँकर अफ़्सोस
बेवफ़ा उम्र दग़ाबाज़ जवानी निकली