इक तिरी बात कि जिस बात की तरदीद मुहाल
इक मिरा ख़्वाब कि जिस ख़्वाब की ताबीर नहीं
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इश्क़ की चौसर किस ने खेली ये तो खेल हमारे हैं
तुम वक़्त पे कर जाते हो पैमान फ़रामोश
मेरी दुश्वारी है दुश्वारी मिरी
दिन भी है रात भी है सुब्ह भी है शाम भी है
तेरी बख़्शिश के भरोसे पे ख़ताएँ की हैं
जिनाँ की कहते हैं यूँ मुझ से हज़रत-ए-वाइज़
किसी ने बर्छियाँ मारीं किसी ने तीर मारे हैं
न लाए ताब-ए-दीद औसान वाले
इस भरी महफ़िल में हम से दावर-ए-महशर न पूछ
आइना सामने अब आठ पहर रहता है
यहाँ क्या है वहाँ क्या है इधर क्या है उधर क्या है
तिरी अदा की क़सम है तिरी अदा के सिवा