दिन भी है रात भी है सुब्ह भी है शाम भी है
इतने वक़्तों में कोई वक़्त-ए-मुलाक़ात भी है
Jaun Eliya
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कली रह गई ना-शगुफ़्ता हमारी
किसी ने बर्छियाँ मारीं किसी ने तीर मारे हैं
तिरी अदा की क़सम है तिरी अदा के सिवा
जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है
कब वो आएँगे इलाही मिरे मेहमाँ हो कर
घटा उट्ठी है काली और काली होती जाती है
क़िबला-ओ-काबा ये तो पीने पिलाने के हैं दिन
बग़ल में हम ने रात इक ग़ैरत-ए-महताब देखा है
क्यूँ किया करते हैं आहें कोई हम से पूछे
ये घटा ऐसी घटा इतनी घटा
मिलो मिलो न मिलो इख़्तियार है तुम को