इस भरी महफ़िल में हम से दावर-ए-महशर न पूछ
हम कहेंगे तुझ से अपनी दास्ताँ सब से अलग
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तुम भूल गए मुझ को यूँ याद दिलाता हूँ
तौबा की रिंदों में गुंजाइश कहाँ
इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
आप का इख़्तियार है सब पर
पूछी तक़्सीर तो बोले कोई तक़्सीर नहीं
क़दम क़दम पे ये कहती हुई बहार आई
न मानोगे न मानोगे हमारी
समझाएँ किस तरह दिल-ए-ना-कर्दा-कार को
अब कौन बात रह गई ये बात भी गई
मुझ को मालूम है अंजाम-ए-मोहब्बत क्या है
इक तिरी बात कि जिस बात की तरदीद मुहाल