जाँ-निसारान-ए-मोहब्बत में न हो अपना शुमार
इम्तिहाँ इस लिए ज़ालिम ने हमारा न किया
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क़ुबूल हो कि न सज्दा ओ सलाम अपना
उस गली में हज़ार ग़म टूटा
दर्द-ए-दिल यार रहा दर्द से यारी न गई
कहाँ क़िस्मत में इस की फूल होना
हवा बाँधते हैं जो हज़रत जिनाँ की
ख़बर इतनी तो है झोंके तिरे बाद-ए-ख़िज़ाँ पहुँचे
किसी से आज का वादा किसी से कल का वादा है
आप का इख़्तियार है सब पर
किस पे दिल आया कहाँ आया बता ऐ नासेह
पूछी तक़्सीर तो बोले कोई तक़्सीर नहीं
जो दिल-नशीं हो किसी के तो इस का क्या कहना