कहाँ क़िस्मत में इस की फूल होना
वही दिल की कली है और हम हैं
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या दूर मिरा हिजाब कर दे
अब कौन बात रह गई ये बात भी गई
जो निगाह-ए-नाज़ का बिस्मिल नहीं
हवा बाँधते हैं जो हज़रत जिनाँ की
दर्द-ए-दिल यार रहा दर्द से यारी न गई
शिकस्त-ए-तौबा की तम्हीद है तिरी तौबा
इक मिरा सर कि क़दम-बोसी की हसरत इस को
किसी से आज का वादा किसी से कल का वादा है
कहते हैं कि दे मेरी बला दाद किसी की
यूँ ये बदली काली काली जाएगी
बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
समझाएँ किस तरह दिल-ए-ना-कर्दा-कार को