कभी दिल की कली खिली ही नहीं
ए'तिबार-ए-बहार कौन करे
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जो उन को चाहिए वो किए जा रहे हैं वो
कल तो देखा था 'मुबारक' बुत-कदे में आप को
जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
इस भरी महफ़िल में हम से दावर-ए-महशर न पूछ
बेश ओ कम का शिकवा साक़ी से 'मुबारक' कुफ़्र था
न लाए ताब-ए-दीद औसान वाले
मैं तो हर हर ख़म-ए-गेसू की तलाशी लूँगा
क़यामत की हक़ीक़त जानता हूँ
क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
तौबा की रिंदों में गुंजाइश कहाँ
क्यूँ किया करते हैं आहें कोई हम से पूछे
तुम वक़्त पे कर जाते हो पैमान फ़रामोश