किसी से आज का वादा किसी से कल का वादा है
ज़माने को लगा रक्खा है इस उम्मीद-वारी में
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लगा दे सोज़-ए-मोहब्बत फिर आग सीने में
जो उन को चाहिए वो किए जा रहे हैं वो
कब वो आएँगे इलाही मिरे मेहमाँ हो कर
दिल में आने के 'मुबारक' हैं हज़ारों रस्ते
मिरी ख़ाक भी उड़ेगी बा-अदब तिरी गली में
खटक रही है कोई शय निकाल दे कोई
मेहराब-ब-इबादत ख़म-ए-अबरू है बुतों का
किसी की तमन्ना निकलती रही
मस्जिद की सर-ए-राह बिना डाल न ज़ाहिद
मोहब्बत में ठनी अक्सर यहाँ तक
क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक
तुम्हारी शर्त-ए-मोहब्बत कभी वफ़ा न हुई