कुछ इस अंदाज़ से सय्याद ने आज़ाद किया
जो चले छुट के क़फ़स से वो गिरफ़्तार चले
Gulzar
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बेश ओ कम का शिकवा साक़ी से 'मुबारक' कुफ़्र था
जो क़यामत का नहीं दिन वो मिरा दिन कैसा
देखे उसे हर आँख का ये काम नहीं है
किसी से आज का वादा किसी से कल का वादा है
ये ग़म-कदा है इस में 'मुबारक' ख़ुशी कहाँ
आप का इख़्तियार है सब पर
यहाँ क्या है वहाँ क्या है इधर क्या है उधर क्या है
समझाएँ किस तरह दिल-ए-ना-कर्दा-कार को
इक तिरी बात कि जिस बात की तरदीद मुहाल
तेरी बख़्शिश के भरोसे पे ख़ताएँ की हैं
क़यामत की हक़ीक़त जानता हूँ