जो दिल-नशीं हो किसी के तो इस का क्या कहना
जगह नसीब से मिलती है दिल के गोशों में
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या दूर मिरा हिजाब कर दे
तुम भूल गए मुझ को यूँ याद दिलाता हूँ
फिर न दरमाँ का कभी नाम 'मुबारक' लेना
अब कौन बात रह गई ये बात भी गई
कुछ इस अंदाज़ से सय्याद ने आज़ाद किया
न लाए ताब-ए-दीद औसान वाले
चितवन जो क़हर की है तो तेवर जलाल के
जिनाँ की कहते हैं यूँ मुझ से हज़रत-ए-वाइज़
हम भी दीवाने हैं वहशत में निकल जाएँगे
पूछी तक़्सीर तो बोले कोई तक़्सीर नहीं
पर्दे पर्दे में बहुत मुझ पे तिरे वार चले
कल तो देखा था 'मुबारक' बुत-कदे में आप को