तुम भूल गए मुझ को यूँ याद दिलाता हूँ
जो आह निकलती है वो याद-दहानी है
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इसे सौदा उसे सौदा ये दीवाना वो दीवाना
ताज़ा आज़ार का अरमान कहाँ जाता है
दामन अश्कों से तर करें क्यूँ-कर
ले चला फिर मुझे दिल यार-ए-दिल-आज़ार के पास
मस्जिद की सर-ए-राह बिना डाल न ज़ाहिद
तेरी बख़्शिश के भरोसे पे ख़ताएँ की हैं
जाँ-निसारान-ए-मोहब्बत में न हो अपना शुमार
बिखरी हुई है यूँ मिरी वहशत की दास्ताँ
बग़ल में हम ने रात इक ग़ैरत-ए-महताब देखा है
बद-ज़न हैं अहल-ए-काबा मुझ दैर-आश्ना से
अब वही सैद है जो था सय्याद