निकलना आरज़ू का दिल से मालूम
हुजूम-ए-यास में रस्ता मिले क्या
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तुम वक़्त पे कर जाते हो पैमान फ़रामोश
तुम भूल गए मुझ को यूँ याद दिलाता हूँ
किसी की तमन्ना निकलती रही
गई बहार मगर अपनी बे-ख़ुदी है वही
अजब रंग की मय-परस्ती रही
समझाएँ किस तरह दिल-ए-ना-कर्दा-कार को
या दूर मिरा हिजाब कर दे
मेरे सर से क्या ग़रज़ सरकार को
जो दिल-नशीं हो किसी के तो इस का क्या कहना
कुछ इस अंदाज़ से सय्याद ने आज़ाद किया
तिरी अदा की क़सम है तिरी अदा के सिवा
आने में कभी आप से जल्दी नहीं होती