तेरी हँसती हुई आँखों में
रंग बहार के रक़्साँ देखे
तेरी ज़ुल्फ़ों की लहरों में
घोर अँधेरे हैराँ देखे
हर मेहराब में तेरे बदन की
सौ सौ दीप फ़रोज़ाँ देखे
तू जो हँसे तो कौन-ओ-मकाँ में
सात सुरों की बरखा बरसे
और इस बरखा में दिल मेरा
जितना भीगे उतना तरसे
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ज़मीं बिछा के अलग आसमाँ बनाऊँ कोई
यही तो दुख है ज़मीं आसमाँ बना कर भी
जला दिया है कि इस ने बुझा दिया है मुझे
न आह करते हुए और न वाह करते हुए
तिरी बज़्म से जो उठ कर तिरे जाँ-निसार आए
वो दिल हैराँ नहीं होते
बड़े तूफ़ाँ उठाने के लिए हैं
मोहब्बत रम्ज़-ए-हस्ती है
मैं दिन भर पहले इस दुनिया की जौलानी में रहता हूँ
अहल-ए-हुनर बेकार हुए
प्यास
ग़ुबार-ए-राह-ए-तिलिस्म-ए-ज़माना हो गए हैं