इक उम्र की काविश से हम ने
जो कार-ए-तमन्ना सीखा था
दुनिया के नए बाज़ार में अब
कुछ माँग नहीं बाक़ी उस की
ये ज़ोम-ए-मोहब्बत क्या कीजे
हम अहल-ए-हुनर बेकार हुए
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
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ख़ुशी से ज़ीस्त का हर दुख उठाए जाते हैं
लम्हों के असरार
बड़े तूफ़ाँ उठाने के लिए हैं
इक ख़्वाब को आँखें रेहन रखें इक शौक़ में दिल वीरान किया
यही तो दुख है ज़मीं आसमाँ बना कर भी
वो दिल हैराँ नहीं होते
इदराक
न आह करते हुए और न वाह करते हुए
कभी ख़ुदा कभी ख़ुद से सवाल करते हुए
प्यास
ग़ुबार-ए-राह-ए-तिलिस्म-ए-ज़माना हो गए हैं
अहल-ए-हुनर बेकार हुए