मुनीर शिकोहाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुनीर शिकोहाबादी (page 6)
नाम | मुनीर शिकोहाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Muneer Shikohabadi |
जन्म की तारीख | 1814 |
मौत की तिथि | 1880 |
हमारी रूह जो तेरी गली में आई है
हल्क़ा हल्क़ा घर बना लख़्त-ए-दिल-ए-बेताब का
है ईद लाओ मय-ए-लाला-फ़ाम उठ उठ कर
हाल-ए-पोशीदा खुला सामान-ए-इबरत देख कर
ग़म सहते हैं पर ग़म्ज़ा-ए-बेजा नहीं उठता
फ़ौज-ए-मिज़्गाँ का कुछ इरादा है
फ़स्ल-ए-बहार आई है पैमाना चाहिए
दुश्मन की मलामत बला है
दुनिया से दाग़-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम ले गया
दिल तो पज़मुर्दा है दाग़-ए-गुल्सिताँ हों तो क्या
बुतों के घर की तरफ़ काबे के सफ़र से फिरे
बे-वक़्त जो घर से वो मसीहा निकल आया
बढ़ चला इश्क़ तो दिल छोड़ के दुनिया उट्ठा
और मुझ सा जान देने का तमन्नाई नहीं
असर कर के आह-ए-रसा फिर गई
अक्स-ए-रुख़-ए-गुलगूँ से तमाशा नज़र आया
ऐसी हुई सरसब्ज़-शिकायत की कड़ी बात
ऐ बुत जो शब-ए-हिज्र में दिल थाम न लेते
अबरू की तेरी ज़र्ब-ए-दो-दस्ती चली गई
आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते
आमद तसव्वुर-ए-बुत-ए-बेदाद-गर की है
आख़िर को राह-ए-इश्क़ में हम सर के बल गए
आईने के अक्स से गुल सा बदन मैला हुआ