मुनीर शिकोहाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुनीर शिकोहाबादी (page 4)
नाम | मुनीर शिकोहाबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Muneer Shikohabadi |
जन्म की तारीख | 1814 |
मौत की तिथि | 1880 |
देखा है आशिक़ों ने बरहमन की आँख से
दौलत के दाँत कुंद किए मेरे हिर्स ने
दश्त-ए-वहशत में नहीं मिलता है साया काँपता
दस बीस हर महीने में अबरू नज़र पड़े
दम भर रहे हबाब-ए-नमत काएनात में
चेहरा तमाम सुर्ख़ है महरम के रंग से
बोसे हैं बे-हिसाब हर दिन के
बोसा-ए-लब ग़ैर को देते हो तुम
बिस्मिलों से बोसा-ए-लब का जो वा'दा हो गया
बिगड़ी हुई है सारी हसीनों की बनावट
भटके फिरे दो अमला-ए-दैर-ओ-हरम में हम
बे-तकल्लुफ़ आ गया वो मह दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न
बे-इल्म शाइरों का गिला क्या है ऐ 'मुनीर'
बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम
बरहमन का'बे में आया शैख़ पहूँचा दैर में
अशआ'र मेरे सुन के वो ख़ामोश हो गया
ऐ रश्क-ए-माह रात को मुट्ठी न खोलना
ऐ बुत ये है नमाज़ कि है घात क़त्ल की
अब के बहार-ए-हुस्न-ए-बुताँ है कमाल पर
आते नहीं हैं दीदा-गिर्यां के सामने
आस्तीन-ए-सब्र से बाहर न निकलेगा अगर
आशिक़ बना के हम को जलाते हैं शम्अ'-रू
आँखों में नहीं सिलसिला-ए-अश्क शब-ओ-रोज़
आँखों में खटकती ही रही दौलत-ए-दुनिया
आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते
क़ैद से नजात
ज़ख़्मी न भूल जाएँ मज़े दिल की टीस के
वो ज़ुल्फ़ हवा से मुझे बरहम नज़र आई
उम्र बाक़ी राह-ए-जानाँ में बसर होने को है
तुम्हारे घर से पस-ए-मर्ग किस के घर जाता