चेहरा तमाम सुर्ख़ है महरम के रंग से
अंगिया का पान देख के मुँह लाल हो गया
Parveen Shakir
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Habib Jalib
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Mir Taqi Mir
Gulzar
Jaun Eliya
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तुम्हारे घर से पस-ए-मर्ग किस के घर जाता
मैं रोता हूँ आह-ए-रसा बंद है
पाया तबीब ने जो तिरी ज़ुल्फ़ का मरीज़
ख़ाकसारों में नहीं ऐसी किसी की तौक़ीर
और मुझ सा जान देने का तमन्नाई नहीं
सरसों जो फूली दीदा-ए-जाम-ए-शराब में
कलकत्ता को डाक में चला हूँ जो मैं आह
आस्तीन-ए-सब्र से बाहर न निकलेगा अगर
गर्मी में तेरे कूचा-नशीनों के वास्ते
ज़ख़्मी न भूल जाएँ मज़े दिल की टीस के
दौलत के दाँत कुंद किए मेरे हिर्स ने