मुनीर शिकोहाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुनीर शिकोहाबादी (page 2)

मुनीर शिकोहाबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुनीर शिकोहाबादी (page 2)
नाममुनीर शिकोहाबादी
अंग्रेज़ी नामMuneer Shikohabadi
जन्म की तारीख1814
मौत की तिथि1880

सख़्ती-ए-दहर हुए बहर-ए-सुख़न में आसाँ

सदमे से बाल शीशा-ए-गर्दूँ में पड़ गया

सब्र कब तक राह पैदा हो कि ऐ दिल जान जाए

सब ने लूटे उन के जल्वे के मज़े

रोज़ दिल-हा-ए-मै-कशाँ टूटे

रिंदों को पाबंदी-ए-दुनिया कहाँ

पाया तबीब ने जो तिरी ज़ुल्फ़ का मरीज़

पहुँचा है उस के पास ये आईना टूट के

पड़ गई जान जो उस तिफ़्ल ने पत्थर मारे

नमाज़ शुक्र की पढ़ता है जाम तोड़ के शैख़

मुँह तक भी ज़ोफ़ से नहीं आ सकती दिल की बात

मुंडेरों पर छिड़क दे अपने कुश्तों का लहू ऐ गुल

मुझ को अपने साथ ही तेरे सुलाने की हवस

मिल मिल गए हैं ख़ाक में लाखों दिल-ए-रौशन

मस्तों में फूट पड़ गई आते ही यार के

मलते हैं ख़ूब-रू तिरे ख़ेमे से छातियाँ

मैं क्या दिखाई देती नहीं बुलबुलों को भी

मैं जुस्तुजू से कुफ़्र में पहुँचा ख़ुदा के पास

लेटे जो साथ हाथ लगा बोसा-ए-दहन

लगाईं ताक के उस मस्त ने जो तलवारें

लग गई आग आतिश-ए-रुख़ से नक़ाब-ए-यार में

क्या मज़ा पर्दा-ए-वहदत में है खुलता नहीं हाल

कुफ्र-ओ-इस्लाम ने मक़्सद को पहुँचने न दिया

कुफ्र-ओ-इस्लाम में तौलें जो हक़ीक़त तेरी

कोठे पे चेहरा-ए-पुर-नूर दिखाया सर-ए-शाम

किसी से उठ नहीं सकने का बोझ मस्तों का

किस तरह ख़ुश हों शाम को वो चाँद देख कर

किब्र भी है शिर्क ऐ ज़ाहिद मुवह्हिद के हुज़ूर

की तर्क मैं ने शैख़-ओ-बरहमन की पैरवी

ख़ूब ताज़ीर-ए-गुनाह-ए-इश्क़ है

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